________________ सयोगकेवली गुणस्थान ___239 गुणस्थानवर्ती परमात्मा के केवलज्ञान के कारण क्षायिक सम्यक्त्व को ही परमावगाढ़ सम्यक्त्व कहते हैं। चारित्र अपेक्षा विचार - परम यथाख्यात चारित्र / क्षीणमोह गुणस्थान में श्रद्धा तथा चारित्र गुण का पूर्ण निर्मल परिणमन होने के कारण यथाख्यात चारित्र हुआ था। अब तेरहवें गुणस्थान में केवलज्ञान के निमित्त से उसी चारित्र को परम यथाख्यात कहते हैं। काल अपेक्षा विचार - जघन्यकाल - अंतर्मुहूर्त / तीर्थंकर सयोगकेवली को छोड़कर अन्य परमगुरु कम से कम अपना जीवन अंतर्मुहूर्त पर्यंत यहाँ सयोगकेवली अवस्था में व्यतीत करते हैं। कोई भी सयोगकेवली जिनेन्द्र अंतर्मुहूर्त से कम कालावधि में तेरहवें गुणस्थान को छोड़कर चौदहवें गुणस्थान में गमन नहीं कर सकते। __इन अरहंत सयोगी परमात्मा का दिव्यध्वनि से उपदेश हो या न हो; विहार हो या न हो अथवा अंतःकृतकेवली हो; सभी सयोगकेवली परमात्माओं का तेरहवें गुणस्थान का जघन्यकाल अंतर्मुहूर्त ही है। तीर्थंकर सयोगकेवली परमात्मा का जघन्यकाल वर्ष पृथक्त्व अर्थात् 3 वर्ष से लेकर 9 वर्ष के अंदर ही होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि तीर्थंकर सयोगकेवली परमात्मा का जघन्य विहार काल भी वर्ष पृथक्त्व ही होता है। उत्कृष्टकाल - गर्भकाल सहित आठ वर्ष तथा आठ अंतर्मुहूर्त कम एक पूर्व कोटि काल / इतना दीर्घ काल तेरहवें गुणस्थान का कैसे होता है, इसका स्पष्टीकरण - ____ जो एक पूर्व कोटि वर्ष की उत्कृष्ट आयु के धारक कर्मभूमिज कोई श्रेष्ठ पुरुष गर्भकाल सहित आठ वर्ष के होते ही दीक्षा लेकर केवल आठ अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत मुनिजीवन में आत्मसाधना करके जो सयोगकेवली गुणस्थान को प्राप्त हुए हैं; वे जिनेन्द्र परमात्मा अपनी मनुष्यायु के अंत पर्यंत दिव्यध्वनि से उपदेश करते हुए विहार करते हैं।