________________ अपूर्वकरण गुणस्थान अपूर्वकरण नाम का यह आठवाँ गुणस्थान श्रेणी के गुणस्थानों में प्रथम गुणस्थान है। 69. प्रश्न : श्रेणी किसे कहते हैं ? उत्तर : चारित्रमोहनीय कर्म की (अनंतानुबंधी चतुष्क रहित) 21 प्रकृतियों के उपशम या क्षय के निमित्त से वृद्धिंगत होनेवाले जीव की विशुद्धि को/वीतराग परिणामों को श्रेणी कहते हैं। श्रेणी के दो भेद हैं - उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी। 70. प्रश्न : उपमशश्रेणी और क्षपकश्रेणी की क्या परिभाषा है ? उत्तर : जिसमें चारित्र मोहनीयकर्म के 21 प्रकृतियों के उपशम के साथ विशुद्धि/वीतरागता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है, उसे उपशमश्रेणी कहते हैं। आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ ये चार गुणस्थान उपशमश्रेणी के हैं। __जिसमें चारित्रमोहनीय कर्म की 21 प्रकृतियों के क्षय के साथ वीतरागता/विशुद्धि उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है, उसे क्षपकश्रेणी कहते हैं। आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ और बारहवाँ ये चार गुणस्थान क्षपकश्रेणी के हैं। 71. प्रश्न : चारित्रमोहनीय की 21 प्रकृतियों की क्षपणा (क्षय) करनेवाले क्षपक मुनिराज सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान से क्या उपशांत मोह गुणस्थान को लांघकर क्षीणमोही हो जाते हैं ? ___ उत्तर : नहीं, यहाँ लांघकर जाने की बात ही नहीं है / क्षपक मुनिराज चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करते हुए उत्तरोत्तर वीतरागता बढ़ाते हुए उसे पूर्ण करते हैं अर्थात् सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में शेष सूक्ष्म लोभ कषाय कर्म का भी क्षय करके सीधे क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थान में पहुँच जाते हैं। इसलिए उनके मार्ग में उपशांतमोह गुणस्थान के आने का प्रश्न ही नहीं है। क्षय करनेवाले के मार्ग में कर्मों के उपशम के स्थान कैसे आ सकते हैं ? दोनों का स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न ही है।