________________ अप्रमत्तविरत गुणस्थान 175 सहित नहीं होता है; उन्हें अप्रमत्तसंयत कहते हैं अर्थात् संयत होते हुए जिन जीवों के पन्द्रह प्रकार का प्रमाद नहीं पाया जाता है, उन्हें अप्रमत्तसंयत समझना चाहिये। ____ 22. शंका - बाकी के संपूर्ण संयतों का इसी अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में अन्तर्भाव हो जाता है, इसलिये शेष संयतगुणस्थानों का अभाव हो जायेगा? समाधान - ऐसा नहीं है; क्योंकि जो आगे कहे जानेवाले अपूर्वकरणादि विशेषणों से युक्त नहीं है और जिनका प्रमाद नष्ट हो गया है ऐसे संयतों का ही यहाँ पर ग्रहण किया है। इसलिये आगे के समस्त संयतगुणस्थानों का इनमें अन्तर्भाव नहीं होता है। ____23. शंका - यह कैसे जाना जाय कि यहाँ पर आगे कहे जानेवाले अपूर्वकरणादि विशेषणों से युक्त संयतों का ग्रहण नहीं किया गया हैं ? समाधान - नहीं; क्योंकि यदि यह न माना जाय, तो आगे के संयतों का निरूपण बन नहीं सकता है, इसलिये यह मालूम पड़ता है कि यहाँ पर अपूर्वकरणादि विशेषणों से रहित केवल अप्रमत्त संयतों का ही ग्रहण किया गया है। वर्तमान समय में प्रत्याख्यानावरणीय कर्म के सर्वघाती स्पर्धकों के उदयक्षय होने से और आगामी काल में उदय में आनेवाले उन्हीं के उदयाभावलक्षण उपशम होने से तथा संज्वलन कषाय के मन्द उदय होने से प्रत्याख्यान की उत्पत्ति होती है, इसलिये यह गुणस्थान भी क्षायोपशमिक है।