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________________ प्रमत्तविरत गुणस्थान जो (तीन कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक) वीतराग परिणाम, सम्यक्त्व और सकल व्रतों से सहित हो; किंतु संज्वलन कषाय और नौ नोकषाय के तीव्र उदय निमित्त, प्रमाद सहित हो, उसे प्रमत्तविरत गुणस्थान कहते हैं। नाम अपेक्षा विचार - प्रमत्तसंयत, विरत, संयम, सकलसंयम, सकल चारित्र इत्यादि अनेक नाम हैं। मोक्षसाधक मुनिजीवन में यह प्रमत्तसंयत गुणस्थान नियम से होता ही है। ___अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान से सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान पर्यंत यथायोग्य वीतराग परिणाम और राग परिणाम - दोनों/मिश्रभाव भूमिकानुसार होते हैं। यदि कोई ऐसा माने कि छठवें गुणस्थान में मात्र वीतराग परिणाम ही रहता है, राग नहीं अथवा महाव्रतादि 28 मूलगुणों के पालन का राग परिणाम ही रहता है, वीतराग परिणाम नहीं; तो उसकी दोनों मान्यताएँ ठीक नहीं हैं। यहाँ के वीतराग परिणाम में तीन कषाय चौकड़ी का अनुदय निमित्त है और व्यक्त औदयिक राग परिणाम के लिए संज्वलन कषाय चौकड़ी का तीव्र उदय निमित्त है। 54. प्रश्न : प्रमत्तविरत गुणस्थान में संज्वलन कषाय चौकड़ी और नौ नोकषायों का उदय कहा, यह तो ठीक; परन्तु तीव्र उदय कहने का क्या कारण है ? उत्तर : गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 45 में अप्रमत्त गुणस्थान का स्वरूप समझाते हुए आचार्यश्री नेमिचन्द्र ने कषाय तथा नोकषाय का मंद उदय कहा है। अप्रमत्तसंयत ७वें गुणस्थान में (शुद्धापयोगरूप ध्यानावस्था में) कषाय-नोकषायों का उदय मंद होता है, इस अपेक्षा ध्यानरहित शुभोपयोगरूप प्रमत्तसंयत छठवें गुणस्थान में तीव्र उदय कहा है; क्योंकि मुनिराज संज्वलन कषाय के तीव्र उदय से ही सहज नीचे छठवें गुणस्थान में आते हैं; तथापि अनंतानुबंधी आदि तीन कषाय चौकड़ी के अभाव से शुद्ध परिणति सतत रहती ही है। छठवें गुणस्थान से लेकर दसवें सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान पर्यंत कषाय और नोकषायों का उदय निम्नानुसार रहता है।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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