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________________ प्रमत्तविरत गुणस्थान छठवें गुणस्थान का नाम प्रमत्तविरत है; यह गुणस्थान भावलिंगी मुनिराज का है। जैसे दूसरा सासादन गुणस्थान छठवें, पाँचवें या चौथे गुणस्थान से नीचे गिरते/उतरते समय ही प्रगट होता है, वैसे ही छठवाँ प्रमत्तविरत गुणस्थान भी सातवें अप्रमत्तविरत गुणस्थान से नीचे उतरते समय ही होता है; यह सार्वकालिक तथा सार्वदेशिक नियम है। जिसप्रकार कोई भी जीव मिथ्यात्व गुणस्थान से सासादन गुणस्थान में नहीं आता, उसीप्रकार मिथ्यात्व गुणस्थान से लेकर देशविरत तक के नीचे के इन पाँचों गुणस्थानों से कोई भी जीव चढ़कर इस प्रमत्तविरत छठवें गुणस्थान में कभी भी नहीं आता। जैसे दूसरे गुणस्थान की प्राप्ति बड़प्पन की निशानी नहीं है; वैसे प्रमत्तविरत गुणस्थान की प्राप्ति भी बड़प्पन की निशानी नहीं है; तथापि छठवें गुणस्थान में आना सप्तम गुणस्थानवर्ती भावलिंगी मुनिराज का अनिवार्य अंग है। छठवें गुणस्थान में आने को कोई भी मुनिराज टाल नहीं सकते। दूसरे गुणस्थान की अपेक्षा इस छठवें गुणस्थान की यह विशेषता है कि सासादन गुणस्थान से जीव नियम से नीचे के मिथ्यात्व गुणस्थान में गमन करता है; किन्तु प्रमत्तसंयत गुणस्थान से नीचे के किसी भी गुणस्थान में गमन करने का त्रिकाल नियम नहीं है। छठवें गुणस्थान से नीचे किसी भी गुणस्थान में गमन किये बिना भी ये भावलिंगी मुनिराज छठवें से सातवें में और सातवें से छठवें में जाना-आना या आना-जाना सतत करते हुए सातिशय अप्रमत्त होकर श्रेणी मांडकर सिद्ध भगवान भी हो सकते हैं। प्रमत्तसंयत गुणस्थान के परिणामों की अर्थात् शुभोपयोगरूप बाह्य
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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