SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देशविरत गुणस्थान 139 समाधान - संयमासंयम भाव क्षायोपशमिक है; क्योंकि अप्रत्याख्यानावरण कषाय के वर्तमान कालिक सर्वघाती स्पर्धकों के उदयभावी क्षय होने से और आगामी काल में उदय में आने योग्य उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम होने से तथा प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से संयमासंयमरूप अप्रत्याख्यान-चारित्र उत्पन्न होता है। 12. शंका - संयमासंयमरूप देशचारित्रके आधार से सम्बन्ध रखनेवाले कितने सम्यग्दर्शन होते हैं ? समाधान - क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक ये तीनों में से कोई एक सम्यग्दर्शन विकल्प से होता है; क्योंकि उनमें से किसी एक के बिना अप्रत्याख्यान चारित्र का प्रादुर्भाव ही नहीं हो सकता है। 13. शंका - सम्यग्दर्शन के बिना भी देशसंयमी देखने में आते हैं ? समाधान - नहीं, क्योंकि जो जीव मोक्ष की आकांक्षा से रहित हैं और जिनकी विषय-पिपासा दूर नहीं हुई है, उनके अप्रत्याख्यान संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। कहा भी है - ___“जो जीव जिनेन्द्रदेव में अद्वितीय श्रद्धा को रखता हुआ एक ही समय में त्रस जीवों की हिंसा से विरत और स्थावर जीवों की हिंसा से अविरत होता है, उसको विरताविरत कहते हैं।" प्रश्न : हमारे पास थोड़ी सम्पत्ति है, तो दान कहाँ से करें? उत्तर : भाई! विशेष सम्पत्ति हो तो ही दान हो; ऐसी कोई बात नहीं और तू उसे तेरे संसार कार्यों में खर्च करता है या नहीं ? तो धर्म कार्य में भी उल्लासपूर्वक थोड़ी सम्पत्ति में से तेरी शक्तिप्रमाण खर्च कर | दान के बिना गृहस्थपना निष्फल है। अरे ! मोक्ष का उद्यम करने का यह अवसर है। उसमें सभी राग न छूटे तो थोड़ा राग तो घटा / मोक्ष के लिए तो सभी राग छोड़ना पड़ेगा। यदि दानादि द्वारा थोड़ा राग भी घटाते तुझसे नहीं बनता तो तू मोक्ष का उद्यम | किसप्रकार करेगा? - श्रावकधर्मप्रकाश, पृष्ठ : 114
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy