________________ न होना यह मिथ्यात्व है / एवं सुदेव (वीतराग सर्वज्ञ अरिहंतदेव), सुगुरु (वीतराग-प्रणीत साधु धर्म के पालक), व सुधर्म (वीतराग सर्वज्ञप्रणीत धर्म) पर रुचि न होना यह भी मिथ्यात्व है / (1) मिथ्यात्व के पांच प्रकार है : (1) अनाभोगिक मिथ्यात्व :- ऐसी मूढता कि जिस में तत्त्वअतत्त्व का कुछ भी आभोग यानी ज्ञान न हो / यह एकेन्द्रिय जीव से लेकर संमूर्छिम असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव तक को होता है / (2) आभिग्रहिक मिथ्यात्व :- जिस में मिथ्यातत्त्व पर दुराग्रहभरी श्रद्धा होती है / यह हठाग्रही मानव आदि में होता है / (3) अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व :- यह सरल प्रज्ञापनीय मंद मिथ्यादृष्टि मानव आदि में होता है, जैसे महावीर भगवान से प्रतिबोधित इन्द्रनाग तापस में / (4) आभिनिवेशिक मिथ्यात्वः- यह सम्यक्त्व से जो भ्रष्ट होता है उसे होता है / जिनशासन के किसी तत्त्व पर दुराग्रह पूर्ण अश्रद्धा से यह होता है; जैसे कि जमालि आदि को / (5) सांशयिक मिथ्यात्व :यह है-सर्वज्ञ भगवान के वचन पर शंका-कुशंका / इन पांचो प्रकार के मिथ्यात्व का त्याग करना चाहिए, क्योंकि मिथ्यात्व यह इतना उग्र दोष है कि इस के आवेश के साथ की हुई बड़ी तपस्या-त्याग एवं पांडित्यादि भी निष्फल जाते हैं / ___ (2) अविरति :