________________ (8) आठवें क्रम में 'कार्मण वर्गणा' के पुद्गल हैं / जीव मिथ्यात्व आदि एक या अनेक आस्रवों का सेवन करता है तब ये कार्मण पुद्गल जीव के साथ चिपककर (बद्ध होकर) कर्मरूप बन जाते हैं / 14 राजलोक में इन आठ वर्गणाओं के अतिरिक्त भी दूसरी इनसे भी सूक्ष्मातिसूक्ष्म अन्य वर्गणाएँ हैं, जैसे कि 'प्रत्येक वर्गणा', 'बादरवर्गणा' आदि, यावत् अन्त में 'अचित्त महास्कंध वर्गणा' के पुद्गल हैं / परंतु जीव के लिए ये निरुपयोगी है, उपयुक्त नहीं; अर्थात् ये ऐसी नहीं है कि आहारादि के रूप में ली जा सके / उपयोगी वर्गणाएँ मात्र आठ हैं / प्रकाश, प्रभा, अंधकार, छाया... ये समस्त औदारिक पुद्गल हैं / इन में परिवर्तन हुआ करता हैं / जैसे कि प्रकाश के पुद्गल अंधकाररूप में परिणत हो जाते हैं / छाया के पुद्गल प्रत्येक स्थूल शरीर में से, उस उस रंग के, बाहर निकलते रहते हैं / दुर्बिन के शीशे के आर पार होकर सफेद कागज़ अथवा कपड़े पर वैसे रंग में पड़ी हुई छाया के रूप में धूप में दिखाई देते हैं / फोटोग्राफ की प्लेट पर ये छाया पुद्गल ग्रहण कर लिए जाते है और प्लेट पर फोटू (तस्वीर) दृष्टिगोचर होती हैं / ___ भूमि में बोये गए सचित्त (सजीव) बीज के जीव, अपने कर्मानुसार उन प्रकार के पुद्गल, आकाश और भूमि में से आहार