________________ और दुःखानुबंधी इस संसार में से छुटकारा पाकर मोक्ष पाने के लिए जैनधर्म में दर्शित मार्ग "सम्यग्दर्शन-ज्ञान- चारित्र" है / 'सम्यग्दर्शन' यह सर्वज्ञ-कथित तत्त्वभूत पदार्थ की श्रद्धारूप है / वीतराग सर्वज्ञकथित ही तत्त्व यथार्थ (सच्चे) होते हैं; क्योंकि सर्वज्ञ भगवान अनंतज्ञान (केवलज्ञान) से समस्त विश्व को अपनी त्रिकाल अवस्था के साथ प्रत्यक्ष देखते हैं, यानी अनंत भूतकाल, वर्तमान काल व अनंत भविष्यकाल की समस्त अवस्थाओं के सहित सभी द्रव्यों का उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन है / इसलिए जैसा प्रत्यक्ष में देखते हैं वैसा ही जगत के समक्ष निरूपण करते हैं, अतः वे ही द्रव्य व वे ही तत्त्व सच्चे मानने लायक है / वीतराग सर्वज्ञ भगवान के द्वारा कथित ऐसे तत्त्व 'नौ तत्त्व' है,- जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, बन्ध, निर्जरा व मोक्ष / / इन में जीव-अजीव तत्त्व 'ज्ञेय' तत्त्व हैं / पुण्य, शुभ आश्रव, संवर, निर्जरा व मोक्ष, ये 'उपादेय' तत्त्व है / तथा पाप, अशुभ आश्रव व बन्ध 'हेय' तत्त्व हैं / ____ नौ तत्त्व के ज्ञेय, हेय, उपादेय ऐसे तीन विभाग है / और 'ज्ञेय' यानी मात्र जानने योग्य किन्तु राग-द्वेष करने योग्य नहीं / ज्ञेय तत्त्व है जीव-अजीव / 'हेय' तत्त्व है- पाप, अशुभ आश्रव व बन्ध / ये त्याग करने योग्य है, आदरने योग्य नहीं / तथा 'उपादेय' यानी आदर करने योग्य तत्त्व है, पुण्य-संवर, निर्जरा व मोक्ष / अशुभ आश्रव जैसे कि मिथ्यात्व, हिंसादि पापक्रिया, व अप्रशस्त राग-द्वेष