________________ यह परिवर्तन होने के कारण फल भोगने के लिए दूसरी अवस्था की पूरी पूरी संगतता है / इस प्रकार जैनधर्म कष, छेद और ताप; इन तीन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के कारण सौं टच के सोने के समान शुद्ध है / इससे यह समझा जा सकता है कि धर्म का स्वरूप क्या हो सकता है / (6) जैनधर्म यह विश्व धर्म है / जैनधर्म यह सचमुच 'विश्वधर्म' है, कारण कि, (1) जैनधर्म समग्र विश्व का यथास्थित स्वरूप प्रगट करता है | (2) जैनधर्म ऐसे नियम, सिद्धान्त आचार व तत्त्वों का निर्देश करता है कि जो समस्त विश्व द्वारा ग्राह्य है / (3) जैनधर्म में इष्टदेव एसे तीर्थंकर हैं कि जिन के वीतरागता, सर्वज्ञता, सत्यवादिता आदि विशिष्ट गुण विश्व को मान्य है / (4) जैनधर्म समग्र विश्व के जीवों को अपनी कक्षानुसार अपुनर्बंधक अवस्था से लेकर वीतरागता तक के धर्मो का प्रतिपादन करता है / (5) जैनधर्म में समस्त विश्व के युक्तिसिद्ध और सद्भूत तत्त्वो पर प्रकाश डाला गया है / 2 450