________________ बौद्धो ने तत्त्व माना कि 'आत्मा एकान्ततः क्षणिक है' यह भी असंगत है, क्योंकि यदि आत्मा क्षणिक है तो निषिद्ध हिंसा के अनाचरण का फल, तथा विहित तप-ध्यान के आचरण का फल किसे मिलेगा? क्योंकि हिंसा अथवा तप-ध्यान करनेवाली आत्मा तो क्षण में नष्ट हो गई ! अतः सिद्ध हुआ कि क्षणिकत्व सिद्धान्त विधिनिषेध को संगत नहीं है / __एवं एकान्तवाद के सिद्धान्तों में भी असंगति है / जैसे, न्यायदर्शन के मत में जीव एकान्तरूप से नित्य है / इसमें भी असंगति है, क्योंकि एकान्त नित्य में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं हो सकता; तब तो फल के भोग के लिए आवश्यक परिवर्तन का अवकाश ही कहाँ रहेगा? यदि ऐसा परिवर्तन नहीं होगा तो विधि-निषेध किस पर लागू होगा? अतः ऐसे तत्त्व-सिद्धांत की मान्यता में विधि-निषेध और आचारअनुष्ठान संगत नहीं हो सकते / जैनधर्म का कथन है, तत्त्व में 'आत्मा अनन्त है, और 'अनेकान्तवाद के सिद्धान्त में आत्मा नित्यानित्य है / ' अतः विधिनिषेध और आचार, ये तत्त्व एवं सिद्धान्त के साथ संगत है | तत्त्व से आत्माओं की अनन्तता के कारण एक द्वारा दूसरे की हिंसा का प्रंसग संभव है | सिद्धान्त से नित्यानित्य होने के कारण जीव द्रव्यरूप से नित्य है, और पर्याय (अवस्था) रूप से अनित्य है / अवस्था में