________________ भी दिखाई पड़ते हैं / सारांश, देव-गुरु-भक्ति-दया-दान-शील-तप आदि धर्म की आवश्यकता इसलिए है कि (1) इन से पापक्षय एवं पुण्योपार्जन होता है, और इस पुण्य से परलोक में सद्गति मिलती हैं / (2) दान-शील-तप से इस जीवन में भी हमारे में परार्थवृत्ति, पवित्रता एवं सहिष्णुता आदि के बढिये गुण प्राप्त होते हैं, जिन से जीवन सुखद व शांतिमय बनता है / __(3) जिसने जीवन में ऐसे बहुत से धर्मकृत्य किए हैं, उसको जीवन के अंतिम काल में उन धर्मकृत्यों की अनुमोदना एवं सद्गति का आश्वासन मिलता है / वह समझता है कि 'इन धर्मकृत्यों से मैं अच्छी गति में ट्रान्सफर होनेवाला हूँ / ' वास्ते ही मृत्यु पर उसे खेद नहीं, और वह हसता-खिलता मरेगा / जीवन में जिसने धर्म किया ही नहीं है, वह किस पर ऐसा आश्वासन ले सके? उसे तो रोते रोते ही मरना पड़ता है / कहिए, मनुष्य-जन्म का अन्तिम काल अच्छा लाने के लिए भी जीवन में धर्म की ही बहुत आवश्यकता (4) हम मानव-जन्म जो पाए हैं, वह पूर्व जन्म के धर्म से ही पाये हैं, नहीं की पापों से / अगर पापों से मानव-जन्म मिलता हो, RR 378