________________ धर्म की ही अपेक्षा रखते हैं, तब दूसरों को भी हमारे पास से इसी धर्म की ही अपेक्षा है कि,- 'हम उसको न मारें, उसके आगे झूठ न बोलें......' इत्यादि / नास्तिक को भी अन्यों की तरफ से ऐसे ही धर्म की ही अपेक्षा रहती है / प्र०- ठीक, ऐसे अहिंसादि धर्मो की अपेक्षा हो, किन्तु देवदर्शन, गुरुवंदन, दान, शील, तप आदि धर्म की क्या जरूर है? ___ उ०- अगर हम समझते हैं कि हमारा मानवजन्म अनार्य एवं पशु आदि की अपेक्षा बहुत ऊँचा है, तो हमारा जीवन भी ऐसे उच्चकोटि का ही होना चाहिए न? उच्च बनता है, - विषयवैराग्य, उदारता, उमदापन, उच्च तात्त्विक-आध्यात्मिक विचारसरणी से, एवं पूज्यो और उपकारियों के प्रति विनय-सेवा इत्यादि उत्तम जीवनकरणी से / जीवन में ये लाने के लिए हमें सर्वोच्च कोटि के जीवनवाले देवाधिदेव, त्यागी सद्.गुरु एवं धर्मात्माओं का अवलंबन करना पडेगा / उनके उत्तम आदर्शों को हमारी दृष्टि के सामने सतत रखना पडेगा, जिस से ऐसा जीवन जीना सरल हो सके / कीट-पशु-अनार्य मनुष्य बेचारे यह कहाँ से कर सके? उत्तम पुरुषों को आदर्श रूप में हमारी दृष्टि के सामने रखने के लिए देवदर्शन, पूजा, गुरुवंदन, गुरुभक्ति, गुरु के उपदेश का श्रवण, धर्मात्माओं का संपर्क एवं दान-शील-तप आदि धर्म करते रहेना पडेगा और ऐसा करनेवालों के जीवन में पवित्रता, उदार चरित एवं परोपकार