________________ नहीं मानेगा, चाहे पूर्वकी मानव-आत्मा नष्ट हो अब देवआत्मा हुई / अनेकान्त का तात्पर्य यह है कि उस धर्म के होने का एवं दूसरी अपेक्षा से घटमान इसका प्रतिपक्षी धर्म भी होने का निर्णय या सिद्धान्त | जैसे की एकान्तवादी के मतानुसार 'आत्मा नित्य है अर्थात् नित्य ही हैं, अनित्य है ही नहीं / ' अनेकान्त वादी के मतानुसार 'नित्य' भी है 'अनित्य' भी है, अर्थात् नित्यानित्य है / ध्यान में रहे : यह अनेकान्त वादि परिस्थिति किसी भी प्रकार से संशय-अवस्था या अनिश्चित-अवस्था नहीं हैं, परन्तु निश्चित, असंदिग्ध अवस्था ही है / क्यों कि दोनों में से नित्य होना भी निश्चित और दृढ रुप से है ही, तथा अनित्य होना भी निर्णीत और असंदिग्ध रुप से है ही / प्रश्न:- एक ही वस्तु नित्य भी हो और अनित्य भी, क्या यह बात परस्पर विरोध वाली नही? विरूद्ध धर्म एक साथ कैसे रह सकते उत्तर:- वस्तु के दो रूप है (1) मूलरूप तथा (2) अवस्था रूप / वस्तु मूल रुप से कायम रहती है, अर्थात् नित्य है, स्थिर है, फिर भी अवस्था रूप से कायम नहीं, स्थिर नहीं, अनित्य है / जैसे स्वर्ण; स्वर्ण के रूप में स्थिर रहता हैं / तथापि गुल्लो के रुप में या कडे के रुप में कायम नहीं रहता, यह बात स्पष्ट द्रष्टिगोचर होती है / सोना अवस्था रुप से परिवर्तित होता रहता है / दूसरे शब्दो में वह अवस्था रुप में अनित्य है / अलबता नित्यत्व और अनित्यत्व विरुद्ध 30 3330