________________ तीर्थंकर कहा जाता हैं / यह तीर्थंकर अवस्था की उपादान भूत अथवा आधारभूत वस्तु है / इसी प्रकार चंचल चित्त से किया जाने वाला प्रतिक्रमण यह द्रव्यप्रतिक्रमण है, द्रव्य आवश्यक है / (4) भावनिक्षेप :- नाम विशेष का अर्थ यानी भाव, वस्तु की जिस अवस्था में ठीक प्रकार से लागू हो, उस अवस्था में वस्तु को भावनिक्षेप में माना जाता है / जैसे कि समवसरण में देशना दे रहे हैं, तब तीर्थंकर शब्द का अर्थ यानी भाव 'तीर्थ को करने वाले, देशना देकर तीर्थ को चलाने वाले यह लागू होता है / अतः वह तीर्थंकर भावनिक्षेप में गिने जाते है / साधुत्व के गुणों वाला साधु, 'देव-सभा में सिंहासन पर ऐश्वर्य-समृद्धि से शोभायमान इन्द्र' आदि भाव-निक्षेप में है / यहां जैसे 'द्रव्यनिक्षेप' कारणभूत पदार्थ में प्रयुक्त होता है वैसे ही बिलकुल कारण भूत नही, किन्तु आंशिक रूप से समान दिखायी देने वाली तथा उस नाम से संबोधित गुणरहित मिलती-जुलती वस्तु में भी प्रयुक्त होता है / जैसे कि अभव्य आचार्य भी 'द्रव्यआचार्य' है / प्रातःकाल किए जाने वाला दातुन स्नानादि भी द्रव्यआवश्यक एक व्यक्ति में भी चारों निक्षेप घटित हो सकते है / शब्दात्मक नाम; यह नामनिक्षेप है / आकृति; यह स्थापनानिक्षेप है / कारण भूत अवस्था; यह द्रव्य निक्षेप है / उस नाम कि भाव अवस्था; यह 3318