________________ गुजराती रास आदि अनेकानेक विषयो के जैन धर्म में अनेक शास्त्र है / अवधिज्ञानः- 'अवधि' का अर्थ है मर्यादा / अर्थात् जो ज्ञान रूपी द्रव्य विषयक हो, तथा इंद्रिय आदि की सहायता के बिना आत्मा को साक्षात् प्रत्यक्ष हो, वह 'अवधिज्ञान' है / यह दो प्रकार का :- 1. भव प्रत्ययिक, 2. गुण प्रत्ययिक | देव-नारकों को यह जन्मसिद्ध भव प्रत्येक होता है तथा मनुष्यों और तिर्यंचों को तप आदि गुणों से प्रगट होता है, अतः यह गुण प्रत्ययिक है इसके द्वारा कुछ दूर देशकाल तक रूपी पदार्थो को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है / अवधिज्ञान के प्रतिपाती, अतिपाती आदि छ: प्रकार हैं / जो अवधिज्ञान नष्ट हो जाय वह 'प्रतिपाती', जो स्थिर रहे वह 'अप्रतिपाती' / जो उत्पत्ति क्षेत्र के बाहर जीव के साथ जा सके वह 'अनुगामी', जो न जा सके वह 'अननुगामी' | जो बढ़ता जाए वह 'वर्धमान', जो घटता जाए वह 'हीयमान' / 4. मनःपर्यव ज्ञानः- ढाई द्वीप में रहने वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव चिन्तन के लिए मनोवर्गणाओं में से जिस मन को बनाते है, उस मन को प्रत्यक्ष जानने का कार्य मनःपर्यव ज्ञान करता है / इसके अधिकारी अप्रमादी मुनि महर्षि होते हैं / इसके दो प्रकार 231785