________________ संपर्क ही नहीं, किन्तु अव्यक्त चैतन्य-स्फुरण का कारण होता है / अव्यक्त ज्ञान जगाता है / यह 'व्यंजनावग्रह' चक्षु व मन को छोडकर शेष चार इन्द्रियों से ही होता है / कारण यह है कि चक्षु और मन को ज्ञान करने में अपने विषय के साथ संम्पर्क होने की आवश्यकता नहीं रहती है / चक्षु केवल योग्य देश में आई हुई वस्तु को संपर्क (स्पर्श) किए बिना ग्रहण कर लेती है / इसी प्रकार मन भी, विषय का संपर्क (स्पर्श) किए बिना, विषय का चिंतन कर लेता हैं / इसलिए चक्षु और मन को 'अप्राप्य प्रकाशकारी' कहते / शेष चार इन्द्रियों को 'प्राप्य प्रकाशकारी' कहते हैं / मानस मतिज्ञान के रुपकः 'चिन्ता' आदि : (1) मन से भविष्य का विचार यह 'चिन्ता' है / (2) भूतकाल की याद यह 'स्मृति' है / (3) वर्तमान का विचार यह 'मति' या 'संज्ञा' है / (4) 'यह वही व्यक्ति है' इस प्रकार वर्तमान के साथ भूतकाल का अनुसंधान होना यह 'प्रत्यभिज्ञा' है / (5) 'अमुक (वस्तु) हो तो अमुक (वस्तु) होनी ही चाहिए' यह विकल्प ज्ञान 'तर्क है / / 02 31180