________________ प्रमाण-ज्ञान वस्तु को समग्र रूप से देखता है; अतः इसमें इस बात का स्थान नहीं की 'वह अमुक अपेक्षा से ऐसा है / ' जिह्वा से चीनी मीठी लगी, यह मीठी चीनी का ज्ञान हुआ, यह मतिज्ञान है / अथवा शास्त्र से निगोद में अनंत जीव होने का ज्ञान हुआ यह श्रुतज्ञान है / इन में बीच में कोई अपेक्षा नहीं आई / परन्तु हमें विदित हुआ कि 'घडा रामलाल का है' तब इसमें अपेक्षा का अवसर प्रस्तुत हुआ कि यह बात (i) क्या स्वामित्व की दृष्टि से है? या (i) क्या निर्माण की दृष्टि से? या (iii) क्या संग्रह-कर्ता की दृष्टि से है? यह अंश को लेकर अपेक्षा से होनेवाला ज्ञान 'नय' ज्ञान है / 'घडा रामलाल नामक मालिक का?' या 'रामलाल नामक निर्माता का?' या 'रामलाल नामक बेचनवाले का?' वैसा ज्ञान इस अपेक्षा से होनेवाला अंशतः ज्ञान है / यह 'नय' है / 'सकलादेशः प्रमाणम्, विकलादेशो नयः' अर्थात् सामस्त्येन ज्ञान यह 'प्रमाण' ज्ञान है / अंशतः ज्ञान यह 'नय' ज्ञान है / पांच प्रमाणज्ञान : प्रमाण ज्ञान के दो भेद हैं:-(१) प्रत्यक्ष, व (2) परोक्ष / 'प्रत्यक्ष ज्ञान' अर्थात् जो ज्ञान 'अक्ष' = आत्मा के प्रति साक्षात् अर्थात् बाह्य साधन के बिना आत्मा मे साक्षात् उत्पन्न होनेवाला होता है यह प्रत्यक्षज्ञान है / 'परोक्ष' 'अक्ष' = आत्मा को, 'पर' अर्थात् इन्द्रिय आदि किसी साधना से होनेवाला ज्ञान / O 3088