________________ की सीढी पर आरोहण होता है / इसमें जीव रूप में 1 ला मिथ्यात्व गुणस्थानक है / संसार के सभी मिथ्यादृष्टि जीव यहां रहे है / वहां से मिथ्यात्व व उग्र कषायो को दबाकर सम्यक्त्व पर चडता है | अब अगर सम्यक्त्व से गिरता हुआ क्षणभर मिथ्यात्व उदय में न आया किन्तु मात्र उग्र कषाय (अनंतानुबंधी) उदय में आएँ तब वहाँ 2, (दूसरा) सास्वादन क्रमका गुणस्थानक होता है / वमन किये सम्यक्त्व का यहां कुछ आस्वाद रहने से यह दूसरा गुणस्थानक सास्वादन - गुणस्थानक कहा जाता है / क्षण के बाद मिथ्यात्त्व मोहनीयकर्म उदय में आ जाने से, वह जीव वहां से 1 ले गुणस्थानक पर गिरता है / अगर, पहले गुणस्थानक में ही विकास पा कर अथवा चौथे गुणस्थानक से गिरने पर न मिथ्यात्त्व, न सम्यक्त्व ऐसी दशा प्राप्त हो, तब 3 रा 'मिश्र - गुणस्थानक' प्राप्त होता है / वहाँ भी यदि सम्यक्त्व को उदय में लाये, तब जीव 4 था अविरत सम्यग्दृष्टि - गुणस्थानक पर आरुढ होता है / यहाँ सम्यक्त्व आने पर भी कर्मबन्ध का 'अविरति' नाम का दूसरा कारण खडा रहने से वह अविरत 'सम्यग्दृष्टि' कहा जाता है / अब आगे बढ़ते हुए, श्रावकयोग्य रथूल-अहिंसादि अणुव्रत लिएँ तब 5 वां देश विरति-गुणस्थानक प्राप्त होता है / यहाँ सूक्ष्म हिंसापरिग्रहादि पाप मौजूद है / पंचमहाव्रत ग्रहण करके उन सब पापो का प्रतिज्ञाबद्ध त्याग (विरति) कर दें, 2 3048