________________ रानी के राज्य का विजय ध्वज लहराया गया / संध्या समय में बडे मन्त्री के शरीर पर के घावों की शुश्रूषा चल रही थी, ठीक उसी समय रानीजी ने कुशल पृच्छा के लिए पास में बैठ कर पूछाः "मन्त्रीश्वर मार्तंड ! आपके जीवन में यह विरोधाभास कैसा? सुबह में तो सूक्ष्म जीवों की रक्षा? व दिन में बड़े प्राणी हाथी-घोडे यावत् मनुष्य तक की भी हिंसा?" मन्त्री ने कहा - __"देखिए महारानीसाब ! यह मेरा शरीर दो की सेवा में हैं, दिन में आप का नमक खाता हुँ वास्ते आपकी सेवा में युद्ध में प्रतिबद्ध हुआ / रात में मेरी आत्मा को अच्छा परलोक पाना है वास्ते आत्मा की सेवा रुप प्रतिक्रमण आदि क्रिया में प्रतिबद्ध हो गया / " / रानी, अन्य राजाएँ एवं अफसरो ने मन्त्रीश्वर को हाथ जोड दिए / (37) 10 गुणस्थानक यानी आत्मा का उत्क्रान्ति क्रम जैन धर्म में आत्मा की उन्नति-उत्क्रान्ति के लिए 14 गुण स्थानकों की सीढी बतायी गइ है / यह युक्तियुक्त है क्योंकि जीव मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय व योग इन पांच दोषो के कारण कर्मोपार्जन करके इन कर्मवश संसार में भ्रमण करता रहा है / अतः सहज है कि इनमें से अगर दोषो को कम करता चले, तो क्रमशः गुणस्थानकों 2 3038