________________ व विधि निषेध की अश्रद्धा, एवं (iv) जिनवचन से विपरीत प्ररूपणा, - इन चार प्रकार के पापो से पीछे हटना हैं / इस में पापो का तीव्र संताप के साथ मिथ्या दुष्कृत करना होता है / (5) 'कायोत्सर्ग' प्रतिक्रमण से शुद्ध किए पापो के अलावा शेष रहे सूक्ष्म पापो के शुद्धिकरण की क्रिया है / कायोत्सर्ग में खड़ा रहकर काया को बिलकुल स्थिर रखना, वाणी से संपूर्ण मौंन रखना, एवं मन को नियत ध्यान में रखना होता है / इस में पापो के क्षय के साथ ही मन के संताप मिटते है व ध्यान से महान शांति मिलती है | कायोत्सर्ग में प्रतिज्ञाबद्ध काया का उत्सर्ग यानी ममत्त्वत्याग करना है / अलबत्ता इस में तो फिर श्वास-उच्छवास आदि कुछ भी नहीं करना चाहिए, किन्तु कायोत्सर्ग प्रतिज्ञा के सूत्र में ऐसी अनिवार्य कायक्रियाओं का आगार = अपवाद रखा गया है / बाकी कायोत्सर्ग यह श्रेष्ठ कोटि का आभ्यन्तर तप है, जो कि जीवन के अंतिम समय के लिए उत्कृष्ट आराधना है / (6) 'प्रत्याख्यान' (पच्चक्खाण) यह दोष-सेवन से आत्मा पर पडे घाव पर मलहम पट्टी जैसी क्रिया है / इस में रात्रि के लिए अशनपान-खादिम-स्वादिम इन चारों आहार में से सभी का या एक दो आहार का प्रतिज्ञाबद्ध त्याग किया जाता है / दिन के संबन्ध में सुबह से अमुक समय तक के लिए चारों आहारों का त्याग, एवं द्वयशन-एकासन-आयंबिल-उपवास आदि का पच्चक्खाण किया जाता 0 3000