________________ आदि सूत्र बोल रहे हैं / और हमें केवल उनके हिलते हुए ओष्ठ दिखाई दे रहे हैं तथा उनका उच्चारण भी हम ठीक प्रकार से भीतर में कान लगाकर स्फुट अक्षरों में सुन रहे हैं / यह अन्तःश्रवण आन्तर श्रवण) का प्रयोग है / (6) कल्पना करो दृष्टि के सन्मुख अनन्त समवसरण है / इन पर अनन्त अरिहंतदेव है / इनके मस्तक पर अनन्त सिद्ध भगवान हैं / अरिहंत देव के सन्मुख अनन्त आचार्य, अनंत उपाध्याय, अनंत साधु हाथ जोड़कर बैठे है / ऐसी धारणा करने के पश्चात् हम इन्हें क्रमशः नमस्कार कर रहे हों इस रीति से नमस्कार मंत्र का जाप हो सकता है / उपरोक्त नंबर 2. यह पदस्थ जाप का प्रयोग और यह रूपस्थ जाप(पदार्थजाप) का प्रयोग है / तत्पश्चात् जाप में से ध्यान में जाने के लिए 'सकलार्हत्' आदि स्तुतियों तथा स्तवनों की एक-एक गाथा लेकर उसके आधार पर इनके भावों को मानो दृष्टि के सन्मुख चित्र रूप में ठोक तदाकार में प्रस्तुत कर, अरिहंत का ध्यान करना चाहिए / (7) चैत्यवंदन और प्रतिक्रमण की क्रिया के समय भी संबद्ध सूत्र की प्रत्येक गाथा के भाव का चित्र ही पहले तो अवकाश के समय कल्पना में प्रस्तुत करना चाहिए / बाद में सूत्र बोलते समय उसे मन में दृष्टि-सन्मुख लाना, एवं तद्विषयक हृदय के भाव गाथा बोलते हुए उल्लसित करने चाहिए / जैसे की 'जे अ अइयासिद्धा...' 8 2928