________________ कटु फलों का विचार किया जाता है / शुभ कर्म के विपाक में अरिहंत प्रभु की समवसरणादि संपत्ति से लेकर, नरक तक की घोर वेदनाओं की उत्पत्ति का विचार करना / इससे अशुभ कर्म के विपाक में अंतिम कर्म फल की अभिलाषा दूर होती है / 6. विरागविचय :- इसमें काय, कुटुम्ब, विषयों तथा गृहवास के प्रति वैराग्य की विचारधारा प्रवाहित होती है / अहो! (i) वह कैसा जस्ते (कथिर) का शरीर; जो कि मात्र आहार की पीब में से पुसाया व अपवित्र रसरूधिर से निर्मित हुआ / बाद भी यह मल - मूत्रादि अशुचि वस्तुओं से भरा हुआ है फिर शराब के घट के समान इसमें जो भी वस्तु डाली जाए उसे अशुचि अपवित्र करने वाला है / उदाहरणार्थ मिष्टान को विष्टा, तथा पानी को पेशाब, अरे! अमृत को भी पेशाब बना डालता है / ऐसा शरीर उत्पत्ति के बाद भी सतत 9-12 द्वारों से अशुचि को प्रवाहित करने वाला है / अपि च, वह विनश्वर है, स्वयं रक्षण हीन है / और वह आत्मा के लिए भी रक्षण रूप नहीं है / ___(ii) कुटुम्ब में भी मृत्यु अथवा रोग के आक्रमण के समय मातापिता, भाई-बहन, पुत्र-पुत्री, पत्नी, पौत्री आदि कोई भी इसकी रक्षा नहीं कर सकता / तब इसमें भव्य यानी सुन्दर है ही कौन? इसके अतिरिक्त (iii) यदि शब्द, स्पर्श, रूप, रस, आदि विषयो पर दृष्टि डाले 22850