________________ ललाट में आपके चरण को लगाते है वास्ते आप त्रिभुवन तिलक है / पूजा या पीड़ा में आप के ललाट पर कुछ भी हर्ष या खेद की रेखा नहीं / आपके ऐसे प्रशांत ललाट की मैं पूजा करता हूँ और आपका अथाग मोक्ष पुरुषार्थ होने पर भी तत्काल उत्कृष्ट फल न देखने से, आपको अपने ललाट के लेख पर प्रबल श्रद्धा होने से विह्वलता नहीं हुइ, ऐसे आपके ललाट की मैं पूजा कर यही मांगता हूँ / " (7) कंठ पर तिलक में भावना :- "प्रभु ! आप के कंठ ने तत्त्ववाणी प्रकाशन द्वारा जगत का उद्धार किया वास्ते मैं कंठ की पूजा करता हूँ और चाहता हूँ कि-(i) मुझे आप के वचन की अनन्य प्रेम से उपासना रात दिन चले / एवं (ii) मुझ में स्व-पर हितकारी वचनशक्ति आए / (iii) आप के मौन के समान मैं मौन रखकर आत्मनिष्ठ बनूं / " (8) हृदय पर तिलक में भावना :- "प्रभु ! उपशम, निस्पृहता व करुणा से भरे आप के हृदय की जब कल्पना करता हुँ उस समय मेरे रोम रोम हर्षित हो उठते हैं / ऐसे प्राणीमात्र पर प्रेम के सागर समान आप के हृदय की, ऐसे मेरे हृदय की कामना से, मैं पूजा करता हूँ / (9) नाभि पर तिलक में भावना :- "प्रभु ! आपने नाभिकमल में प्राण स्थिर कर ऐसा मन से आत्मा के शुद्ध स्वरुप का ऐसा ध्यान