________________ वीतरागतादि अनंतगुणों का पावर मेरी आत्मा में चला आओ / ' (2) जानु (घुटने) पर तिलक पूजा में भावना-"हे अनंतशक्ति संपन्न अरिहंत प्रभु ! आप जैसे इस जानु के बल पर समस्त चारित्र के साधना-काल में खडे ही खडे कायोत्सर्ग ध्यान में रहे, वैसा मुझे आपके जानु की पूजा से साधना-बल प्राप्त हो / " (3) हाथो पर तिलक पूजा में भावना - "हे दानवीर प्रभु ! चारित्र लेते पहले आपने इन हाथों से वर्ष पर्यन्त रोजाना एक करोड आठ लाख सुवर्णमुद्रा की कीमत का दान दिया वैसी मुझ में दानशक्ति दें, बडा औदार्य गुण दें / " (4) स्कन्धे तिलकपूजा में भावना - "हे निराभिमानी प्रभु ! आप के कंधो में से जैसे आपके पास अनंत शक्ति होते हुए भी अति दुष्ट अभिमानी उपद्रव करनेवाले अल्पबली अत्याचारी के प्रति भी लेश भी अभिमान से कंधा ऊँचा नहीं किया / वैसी निरभिमानता मुझ में प्राप्त हो।" (5) मस्तक पर तिलक में भावना - "प्रभु ! आपने जैसे लोक के सर्वोच्च स्थान सिद्ध शिला पर शाश्वत वास किया, वैसे आप के मस्तक की पूजा से मुझे भी वहाँ वास हो ! आपने मस्तिष्क में हमेशा परहितचिंतन व स्वात्मध्यान ही रखा था; वास्ते मस्तक की पूजा से मुझे भी यही प्राप्त हो / " (6) ललाट पर तिलक में भावना - "प्रभु ! त्रिभुवन जन अपने 2 192