________________ होने वालों की अपेक्षा मनुष्य में से मनुष्य बनकर होने वाले सिद्ध, उनकी अपेक्षा नरक में से मनु 0 हो सिद्ध, उनकी अपेक्षा देवों में से मनुष्य होकर सिद्ध, अतीर्थ-सिद्धों की अपेक्षा तिर्थ-सिद्ध असंख्यात-गुण/ असंख्यात-गुण होते है / सिद्धों के 15 भेद : यहाँ 'सिद्ध' = विदेहसिद्ध या कैवल्यसिद्ध / चरम मनुष्यभव की अपेक्षा से कैवल्य सिद्ध के 15 भेद हैं / 1. कोइ जिन सिद्ध (तीर्थंकर बनकर सिद्ध) / 2. कोइ (असंख्यातगुण) अजिन सिद्ध)। 3. कोइ तीर्थ -सिद्ध (तीर्थ- स्थापना के पश्चात् मोक्ष प्राप्त / 4. कोइ अतीर्थ-सिद्ध, (तीर्थ- स्थापना से पहले सिद्ध जैसे मरूदेवी, अथवा तीर्थ नष्ट होने के बाद सिद्ध) / 5. गृहस्थलिंग सिद्ध (गृहस्थ वेश में केवलज्ञान-प्राप्त भरत-चकवर्ती आदि) / 6. अन्यलिंग सिद्ध (तापस आदि वल्कलचीरी) | 7. स्वलिंग सिद्ध - (साधुवेश में) | 8-10. स्त्री-पुरुष-नपुंसकलिंग सिद्ध (नपु०गांगेय) / 11. प्रत्येकबुद्ध सिद्ध (वैराग्य-जनक निमित्त पाकर विरागी और केवली हुए करकंडु) / 12. स्वयंबुद्धसिद्ध (कर्मस्थिति लघु होने के कारण स्वतः बुद्ध, कपिल (विप्र) / 13. बुद्धबोधित सिद्ध (गुरु से उपदेश प्राप्त कर बने सिद्ध)। 14. एक सिद्ध (एक समय में एक ही सिद्ध,-श्री वीर प्रभु) / 15. अनेक सिद्ध (एक समय में हुए अनेकसिद्ध) | ५वें ६वें के संबंध में ध्यान में रहे कि पूर्व भव में चारित्रकी खूब साधना की होती हैं / 215900