________________ हैं / मूल चारों घाती कर्म पाप-प्रकृति हैं / अतः 5 ज्ञानावरण, + 9 दर्शनावरण, + 26 मोहनीय, + 5 अंतराय = 45 घाती / इसी प्रकार अघाति कर्मो में से 1 अशाता वेदनीय + 1 नरकायु + 1 नीचगोत्र + 34 नामकर्म की, ये 37 / 45 + 37 = कुल 82 पापप्रकृति हैं | नामकर्म की 34 अशुभ प्रकृतियों में, -4 नरक-तिर्यंच की गतिआनुपूर्वी + 4 एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय + 10 प्रथम संघयण संस्थान छोडकर शेष संघयण-संस्थान + 4 अशुभवर्णादि + 1 अशुभ विहायोगति, - इस प्रकार कुल 23 पिंड-प्रकृति + 1 उपघात + 10 स्थावर दशक = कुल 34 / ___पुण्य की 42 + पापकी 82 = 124 प्रकृति / इनमें वर्णादि नामकर्म 4 शुभ, व 4 अशुभ इस प्रकार दो बार गिने हैं अतः कुल 124 में से बाद 4 = 120 कर्म प्रकृतियों का बंध होता हैं / मिथ्यात्व-मोहनीय के साथ मिश्र-मोहनीय और सम्यक्त्व-मोहनीय का बंध नहीं होता, अतः इन्हें बंध में नहीं गिने / किन्तु इनका उदय होता है, क्यों कि बद्ध मिथ्यात्व के ये अर्धशुद्ध-अशुद्ध हुए स्वरूप हैं / अतः इन दोनों का उदय गिनने पर कुल 122 प्रकृति उदय में मानी गई हैं / इन में 5 शरीरों के साथ 5 बंधन और 15 संघातन जोडने पर 20 बढ़ जाती हैं / तथा वर्णादि 4 के स्थान पर 5 वर्ण, 5 रस, 2 गंध-८ स्पर्श _ = इन 20 को गिनने से 16 बढती हैं / अतः 122 में 36 की वृद्धि से = 158 कर्मप्रकृति सत्ता में गिनी जाती हैं | 1298