________________ इन गुणों में, आत्मा में अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, वीतरागता एवं अनंतवीर्यादि लब्धि, - ये चार गुण ज्ञाना- वरणादि चार 'घातीकर्मो' के नाश से प्रगट होते हैं; और वे गुण आत्मा को परमात्मा बनाते है / क्योंकि इन अनंतज्ञानादि चार गुण से आत्मा शुद्ध कही जाती है / यह अवस्था संसार में रहते ही होती है, क्योंकि अभी बाकी के चार आत्मगुण अनंतसुख, अजरअमरता, अरूपीपन एवं अगुरुलघुता, -मोक्ष अवस्था में ही प्रगट होते हैं / ___ इसलिए मोक्ष के पहले यानी संसार में इन गुणों को रोकनेवाले वेदनीय कर्म, आयुष्य कर्म, नाम कर्म व गोत्र कर्म उदय में होने पर भी इन से आत्मा की शुद्धि का यानी आत्मा के परमात्मपन का कोई घात नहीं होता / वास्ते ये वेदनीयादि चार कर्म 'अघाती कर्म' कहे जाते है / अघाती याने परमात्मपन का घात नहीं करनेवाले / कर्म दो प्रकार के है- (1) घाती कर्म, व (2) अघाती कर्म / 'घाती' याने 'आत्म गुण का घात करनेवाला' ऐसा अर्थ बराबर नहीं है, क्यों कि अनंत सुख भी आत्मा का गुण है और वेदनीय कर्म उस का घातक है फिर भी वह वेदनीय कर्म घाती कर्म नहीं कहा जाता है / __ इसलिए घाती का सही अर्थ यह है कि 'घाती' यानी 'परमात्मपन का घातकरनेवाला' / ऐसे घाती कर्म चार है, - ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय कर्म / 2111