________________ (6) स्थिरीकरण - धर्मकार्य में पीड़ित व्यक्तियों को तन, मन, धन से मदद कर उन्हें धर्म में स्थिर रखना / (7) वात्सल्य - साधर्मिक पर माता या बंधु की तरह स्नेहभाव रखना / (8) प्रभावना - जैनेतरों में जैन धर्म की प्रशंसा-प्रभावना हो वैसे सुकृत्यों करते रहना / __(3) चारित्राचार - आठ प्रकार-पांच समिति व तीन गुप्ति का पालन / (4) तपाचार - 12 प्रकार के हैं / 6 बाह्य + 6 अभ्यन्तर तप / इनका वर्णन निर्जरा तत्त्व में किया जायेगा / (5) वीर्याचार - यह 36 प्रकार का है / ज्ञानादिआचारों के 8+8+8+12=36 भेदों के पालन में मन, वचन, काया की शक्ति का रत्ती भर भी गोपन न करते हुए पुरे उत्साह और जोश से उत्तरोत्तर वृद्धि करने के साथ आत्मवीर्य को स्फुरित करना / (17) (7) बन्धतत्त्व / नव तत्त्व में सातवाँ तत्त्व बन्ध है | जैसे कपड़े पर लगा तैल का धब्बा वातावरण में से धूल को खींचता है, और वस्त्र के साथ एकमेक संबंध कर देता है इसी प्रकार आत्मा पर आश्रव...यानी कर्मबन्ध के वे कार्मण वर्गणा को चिपकाते हैं व उन्हें कर्मरूप बनाकर आत्मा SON 1078