________________ हो, स्पर्शनेन्द्रिय मुलायम गद्दी में या स्त्री के स्पर्श में आनंद मानें,...ये सभी आश्रव से आत्मा में पापकर्म आते है / ऐसा, अनिष्ट विषयों में इन्द्रिय घृणा-नफरत करे, वहाँ भी पाप कर्मबंध होता है / कषाय-क्रोधादि चार कषाय दिल में लाने से भी कर्मबन्ध होता है / इससे चाहे बाह्य में कुछ नहीं कर सकता हो, फिर भी कर्मबन्ध होता है / यहाँ ध्यान में रहे कि हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुर्गंछा और स्त्री-पुं-नपुंसक की काम वासना, ये नौ नो कषायों भी कषाय की तरह आश्रव है / जरा भी हँसना किया कि कर्म का बंध हुआ ही समझो / 25 क्रियाओं का भी समावेश यथायोग्य मिथ्यात्वादि पांच आश्रवों में होता है / (16) 6. संवर संवरण अर्थात् ढकना / आश्रव को ढक कर जो कर्म के आगमन को रोके, आश्रव को रोके, उसे संवर कहते है / इसके मुख्य छ: भेद हैं-समिति, गुप्ति, परिषह, यतिधर्म, भावना, चारित्र / ये सब वास्तविक संवर तभी होते है, जब इनका सेवन जिनाज्ञा