________________ (54) हणे सदीव // सु० // 17 // दशकोमी जीव नरकमें / जितरो करे कर्मदूर / तितरोएकलगणही / करेसहीचकचूर // सुप ॥१ए॥ दातकरंतांप्राणीयो / सोकोमीपरमाण / इतरा वरष उरगतितणा / बेदे चतुरसुजाण // सु० // 20 // आंबिल नो फल बहुकह्यो / कोमीएक हजार, करम खपावे इणपरे / नाव आंबिलअधिकार // सु०॥२१॥ कोमिसहसदशबरसही। सहेमुःखनरकमकार / उपवासकरे कनावसुं / तो पामें मुगति // ढाल 3 // केकेइ वरलाधो एदेशी॥ // लाखकोमीवरसांलगे / नरकेकरतांरीवरे / गौतम गणधारी। उच्तपकरतांथकां / सहीनरकनिवारे जीवरे // गौ // // 13 // नरके वरसकोमलाखही, जीवलहें तिहांकुःखरे / तेऽख अमतपढुंती / दूरकरी पासुरकरे // गौ० // 24 // बेदन जेदन नारकी। कोमाकोमिवरसांवरे / कुगतिकुमतिनें परहरो / दशमें एतो फलहोरे // गौ // 25 // नितफासू जल पीवतां / कोमाकोमी वरसनो पापरे / दूरकरे खिण एकमें / निश्चै होय निःपापरे // गौ // 26 // वलिय विशेषे फलकह्यो। पांचमकरे उपवासरे / पामें ज्ञान पांचेजला / करता त्रिभुवन परकासरे // गौ // 27 // चवदश तप विधिसुंकरे चवदह पूरब होय धाररे / म अनेक फल तप तणा / कहितां वलि नावे पाररे // गौ० // 27 // मन वचने कायाकरी / तप करे जे नर नार रे / ग्यारे वरस एकादशी, करतां लहे जवपार रे // गौ // २ए // आग्मतप आराधतां / जीव न फिरे