________________ (40) सरसरसपाय वलि स्वादकेहवोगमें / चौथ पंचम के गण चढिनेपझे। किणहिकषायवसि आय पहिले अमे // // रहे विच एकसमयादि षट् आवली / सहीय सासादने स्थिति इसी सांजली / हिव इहां मिश्र गुणगण बीजोकहे / जेह उत्कृष्ट अंतरमहुरतखहे // ए॥ // ढाल 3 // बेकर जोडीताम एहनी // // पहिलाचारकषाय / शमकरिसमकिती / केतो सादि मिथ्यामतीए / एबेहिजलहे मिश्र / सत्यअसत्य जिहां / सरदहणाबेजंबतीए // 10 // मिश्रगुणालयमांहि / मरणलहे नहीं / आउबंध न पके नवो ए / केतो लहे मिथ्यात / के समकित लहे / मति सरखी गतिपरनवे ए॥ 11 // च्यारश्रप्रत्याख्यान / उदयकरी लहे / मतिविण किहां समकितपणो ए। ते अविरतगुणगण / तेतीससागर / साधिकथिति एहनी जणो ए // 12 // दया उपशमसंवेग / निर्वेदासता / समकितगुणपांचेधरेए / सहुजिन वचनप्रमाण / जिन शासनतणी / अधिकअधिक उन्नति करे ए // 13 // केईक समकितपाय / पुद्गलअरधतां / उत्कृष्टाजवमेरहेए / केईकलेदीगंगि / अंतरमहुरतें / चढतें गुण सिवपदलहे ए // 14 // च्यारकषाय प्रथम्म / त्रिण वलि मोहनी / मिथ्यामिश्रसम्यक्तनी ए, सातेप्रकृति, जास / परही उपसमें / ते उपसमसमकितधणी ए // 15 // जिण साते यकीध / तेनर दायकी / तिणहीज