________________ (33) असुरादिकदसजाण जी। पांचथावरनें तीन विकलेंजी / जगणि इकबीसजी। व्यंतर ज्योतिषीने वैमानिक / श्मदंमकचौवीस जी॥ पू०॥५॥पंचेंजीतिर्यंच अनेनर / पर्याप्ता जे होय जी। ए चौविहदेवां मे उपजे / इमदेवां गतिदोयजी // पू० // 6 // असंख्याते आऊखे नरतिरि, निश्चे देवजथायजी / निजाऊखे समके श्रोडे / पिण अधिके नवि जायजी // पूरा // 7 // जवनपतीके व्यंतरतांई / समूर्बिमतियंचजी / सरगारमे तांई पुहचे / गरलज सुकृतसंचजी // पू०॥७॥ आऊ संख्याते जे गरजज / नर तिर्यंचविवेकजी। बादरपृथवीने वलि पाणी / वनस्पतीप्रत्येकजी // पू० // ए॥ परियाप्ता इण पांचें गमें / आवी उपजे देवजी / इणपांचेमाहें पिण आगे / अधि. काईकहुं हेवजी // पू० // 10 // तीजासरगथकी मांमीसुर / एकेंजी नवि थायजी / अच्मश्रीऊपरलासगला / मानवमाहें जायजी॥ पू० // 11 // // * // ढाल 2 आज निहेज्योरे दीसेनाहलो ए चाल // // नरकतणीगतिआगति इणपरें / जीवनमें संसार / दोय. गतिनें दोयागतिजाणीयें / वलीयविशेष विचार // 12 // नरक // संख्याते श्राऊ परयाप्ता / पंचेंजीतिर्यच / तिमहीज मनुष्य एहिजबेनरकमें / जायेपाप प्रपंच // न // 13 // प्रथम नेरफलगि जाय असन्नियो / गोहनकुलतिमबीय, गृध्रप्रमुख पंखीत्रीजीलगे। सीह प्रमुख चोश्रीय // नः // 15 // पंचमी बृ० स्त०३