________________ (32) स्वामी आप सरीख // वी० // 15 // श्म अनेक तें ऊधस्या / कहूं तोरा हो केता अवदात / सारकरो हिव माहरी। मनमाहें हो आणो मोरमी वात ॥वी // 15 // सूधो संजम नवि पले / नहीं तेहवो हो मुफ दरसण नाण / पिण आधार ने एतलो / इक तोरोहो धरु निश्चल ध्यान // वी० // 16 // मेह महीतल वरसतो / नवि जोवे हो समविषमी गम / गिरु आसहि जे गुण करे / स्वामी सारो हो मोरा वंटित काम // वी० // 17 // तुम नामें सुख संपदा / तुम नामें हो सुख जाये दूर / तुम नामें वंछित फले / तुम नामें हो मुझ आणंद पूर // वी० // 17 // कलश // * // श्म नगर जेशलमेरु मंमण तीर्थकर चौवीसमो / सासना धीसर सिंह लंग्न सेवतां / सुर तरु समो। जिनचंद त्रिशला मात नंदन सकलचंद कलानिलो वाचना चारिज समयसुंदर संथुण्यो त्रिनुवन तिलो // 15 // इति श्री महावीर स्तवनं संपूर्णम् // ॥अथ चौवीस दंडकस्तवनं लिख्यते // // ढाल आदर जीव क्षमा गुण आदर ए चाल / // पूर मनोरथ पासजिनेसर / एह करूं अरदास जी। तारण तरण विरुद तुऊ सांजलि / आयो हुँ धरि आस जी // 1 // पू० ॥ण संसार समुज अथागे, नमियो नवजल मांहि जी। गिलगिचिया जिम आयो गिमतो। साहिब हाथे साहि जी // पू० // 2 // तुं ज्ञानी तो पिण तुफ आगे / बीतक कहिये बातजी / चौवीसेदमक हुँ नमियो / वरणुं तेह विख्यातजी // पू० // 3 // साते नरकतणो कदमक,