________________ पिण ऊधस्या / तें कीधी हो करूणा मोरासाम / हुतो परम जगत ताहरो। तिण तारो हो नहिं ढीलनो काम ॥वी // // शूलपाणि प्रतिबूकव्यो / जिण कीधा हो तुऊने उपसर्ग। मंक दीयो चमकोसीये / तें दीधो हो तसु पाठमो सर्ग // बी० // 5 // गोशालो गुनही घणुं / जिण बोट्या हो तोरा अवरण वाद / ते बलतो तें राखीयो / सीतल लेश्या हो मूकी सुप्रसाद // वी० // 6 // ए कुणने इंश जालीयो / श्म कहितां हो आयो तुम तीर / ते गोतमनें तें कीयो / पोतानो हो प्रनुता नो वजीर // वी० // 7 // वचन उत्थाप्या ताहरा / जे ऊगड्यो हो तुज साथ जमाल / तेहनें पिण पनरे नवे / सिवगामी हो तें कीध कृपाल // वी० // // श्रमत्तो रिषिजे रम्यो / जलमांहें हो बांधी माटीनी पाल / तिरती मूकी काचली। तें तास्यो हो तेहनें तत्काल // वी ॥मेघकुमर रिषि दूहव्यो / चित्त चूको हो चारित्रथी अपार / एकावतारी तेहनें / तें कीधो हो करुणा नंमार // वी० // 10 // बारे वरस वैश्या घरे / रह्यो मूकी हो संयमनोनार / नंदीषण पिण ऊधस्यो / सुरपदवी हो दीधी अतिसार ॥वी०॥ 11 // पंच महाबत परिहरी / गृहि वासे हो वसियो वरस चौवीस / ते पिण आज कुमारनें / तें ताखो हो तोरी एह जगीस।वी॥ // 12 // राय श्रेणिक राणीचेलणा / रूपदेखी हो चित्त चूका जेह / समवसरण साधु साधवी तें कीधा हो श्राराधक तेह // वी० // 13 // विरति नहीं नहीं आंखमी / नहीं पोहोसो नहीं आदरी दीख / ते पिण श्रेणिकरायनें / तें कीधो हो