________________ (३ए) वीशमै, दरशण समसा जोय // ज्ञान कावननेद, चारित्रसित्तर होय // 2 // तप पच्चास गुणजाणिय, नवपदना श्रीकार // एकंदर सहुध्याश्य, त्रणसैबयालीशसार // 3 // आंबिलकरि बाराधिथे, नवोलीसुजगीश // त्रिकरणयोगे ध्यावतां, जिनकृपाचंदसूरीश इति नवपद चैत्यवंदनं // // रोहिणीतप चैत्यवंदनं // वासुपूज्य जिनवरनमुं, वारमजिनसिरताज, रोहिणीतप आराधतां, सारे बांतिकाज // 1 // चोविहारउपवासकरि, पूजक पूजीदेव, दोयसहसगुणनो करी, त्रिकरण थिरकरोसेव, // 2 // सत्तावीशलोगसतणो, काउसग्ग दिलधार, खमासमण देश्लावधी, प्रदक्षिणा सुविचार, // 3 // स्वस्तिक करि फलढोश्य, पूजा विविधप्रकार, जिन कृपाचंदसूरि सेवतां, पामे नवनोपार, // 4 // इति रोहणीतपनो चैत्यवंदन सं० // अथ श्रीवीसस्थानक चैत्यवंदनं. श्रीअरिहंत अनंत कांति सिध निजगुणरामी, प्रवचन आचारिज स्थविर जवळाया हितकामी, साधु नाण दंसण नवम विनय चारित्र वखाणो, ब्रह्म क्रिया तप गोयम जिन वेयावच्च जाणो // 1 // समाधि अपूर्वज्ञानग्रहै, श्रुतत्नक्तिनितसार, तीरथ प्रत्नावन वीसमो, निरुपम सुखदातार, प्रथम चरम जगदीश सकल सेवी सही संपदा, इक दोत्रण पद जपी वावीस जिनवर पदमुदा ॥॥ए विंशति थानक कह्या ए,झाताए जिनचंद, एसेवनथी नवि सहे, त्रिनुवनपति कृपाचंद // 3 // // इति श्री वीसस्थानक चैत्यवंदन संपूर्णम् //