________________ (393) // अथ श्री वीसविहरमानजीको चैत्यवंदन // सीमंधर युगमंधर, बाहु सुबाहु जाण, सुजात स्वयंप्रनु सातमा, रुषलानन मनाण // 1 // अनंतवीर्यने सूरप्रनु, विमल वज्रधर कहिये, चंज्ञानन चंबाहुजी, तुजंग नेम प्रनु लहियै ॥२॥ईश्वर श्रीवयरसेनजी, महान जिनदेव,देवजस अजितवीर्यजी, सुरपति सारे सेव // 3 // पंच विदेहै विचरता ए,बीस जिनेसर जाण,कृपाचंद त्रिहुं कालमें,नमतां क्रोम कट्याण॥॥ ॥इति वीस विहरमानजी चैत्यवंदन संपूर्ण // // अथ श्री सिद्धाचलजीका चैत्यवंदन // सिघाचल सेवू सदा, सहुतीरथ सिरदार, सोरठदेश सोहामणो, तिहां ए गिरिवरसार // 1 // तीननुवनविच एहवो, तीरथ कोइ न होय, श्रीमंधर वयणे करी, शेज महातम जोय // 2 // श्रीयुगादि जिनराजजी, समवसखा इण गम, तेहथी ए तीरथ वमो, अविचल सुखनो धाम // 3 // काति पूनिम दशकोमसुंए, जावा वारिखिस जाण, सिधिवधू रंगे वस्या, कृपाचंद मनाण // 4 // ॥इति सिमाचलजी चैत्यवंदन संपूर्णम् // // अथ श्री वीरजिन चैत्यवंदन // चोविसम जिनवर नमुं, महावीर जिनदेव, शांति सुधामय चंदलो, सुरनर सारे सेव // 1 // नजेसरमें दीपतो, देरासर मनुहार, वीरजिनेसर जगजयो, बावन देहरी सार॥२॥ त्रिसलानंदन जग धणीए, सुख संपति करतार, त्रिकरण योगे प्रणमतां, कृपाचंद सुखकार // 3 //