________________ (356) बृहत्कल्प व्यवहार // सु० // उपदेशमाला नगवश्अंगमे / गीतारथअधिकार // सु० ॥ध // 12 // नाव चरणस्थानक फरस्याविना / न हुवे संयम धर्म // सु० // ते शाने जूठ ते उच्चरे / जे जाणे प्रवचनमर्म // सु० // धम् // 13 // जसलानें निजसंस्मृतथायवा / परजनरंजनकाज // सु० // ज्ञानक्रिया जव्यतविधिसाचवे / तेह नहि मुनिराज // सु० ॥ध // 14 // बाह्य दया एकांतें उपदिसे श्रुताम्नायविहीन // सु० // बगपरेंगगता मूरखलोकने / बहुलमशे तेहदीन / सु० ॥ध // 15 // अध्यातमपरिणति साधनग्रही / उचित वहे आचार // सु० // जिन आणा अविराधकपुरुषजे / धन्यतेहनो अवतार // सु० // ध० // 16 // प्रव्य क्रियानैमित्तिकहेतुने / नावधर्म लयलीन // सु० // नैरुपाधिक तो जे निजअंशनी / माने लालनवीन // सु० ॥ध // 17 // परिणतिदोष नणीजेनिदता, कहेता परिणतिधर्म // सु० // योगग्रंथना नावप्रकाशता / तेह विदारे होकर्म // सु० ॥ध // 17 // अट्पक्रिया पण उपकारीपणे / ज्ञानी साधेहो सिघ // सु० // देवचंड सुविहित मुनि वृंदने। प्रणम्यां सयलसमृद्धि // सु०॥ ध० १ए इति नवमसाधुस्वरूपवर्णनसकाय संपूर्णम् // .. // अथ कलश // राग धन्याश्री // ते तरिया रे नाश्ते तरिया, जे जिनशासनअनुसरियाजी॥ जेहकहे सुविहित मुनिकिरिया / ज्ञानामृतरसदरिया जी // ते // ए आंकणी // 1 // विषयकषायसहूपरहरिया / उत्तम समतावरियाजी // शीलसन्नाथकीपाखरिया। नवसमुज्जल