________________ (17) समत्त समास // 17 // खंति मद्दव अजव मुत्ती तव संजम सम्म / सत्यं सौच अकिंचन बंजचेर जधम्म / पढमअनित्य अशरण संसार एग अनत्त / असुचि आश्रव संवर निजर नवि जावो नित्त // 10 // लोकसुनाव बोधपुरलल ग्यारम गाव / धरमसाधक अरिहंत ए बारे नावननाव / सामायक बेदोप स्थापन बीजो सोय / परिहारविसुछ सूखमसंपराय चउत्थो जोय // 15 ॥तिम अहक्खायचरित्त सर्वजियलोग प्रसिछ। जेह सुविधिआचरणे केशजिय पाम्यासिघ / बारेविध निर्जरतत्व बंधना च्यार प्रकार / प्रकृति लिई अनुनाग प्रदेश नेदें निरधार // 20 // अणसण नणोदर वृत्तिसंखेप रसनो त्याग / कायकलेस संलीनता बाहिरतपषनाग / पायनित विनय वेयावच्च तेम सज्काय / ध्यान कासग्ग अन्यंतर तप षमविध थाय // 1 // प्रकृतिस्वलाव कालअवधारण थिति निरबंच / अनुनागैरसतेमप्रदेसें दखनोंसंच / पट प्रतिहार धारतरवार मद्य वलितेम / निगम चित्रकर कुंजकार नंमारी जेम // 22 // अनुक्रम आउनानाम नाख्याजेजे जाव / तिम ज्ञानावरणादिक अमना एहसनाव / इमसंखेमें विवरण कीना आहे तत्त / प्रस्तावे पाम्यो वरणवस्युं हिव मोख तत्त // 23 // संतपदे परूवण अव्यनें देत्रप्रमाण / फरसना काल पांचमों बो अंतर जाण / नागसातमो नावान तिम अखपबदुत्त / ए नवजेदें नावन करस्युं नवमो तत्त॥२॥ मोक्ष एक पदयी जे जे पदे अविनानाव / व्योम कुसुम तिम ससिक शृंग जिम नहींय अनाव / एहवो जे पद मोक्ष तेहनों 10 स्त०२