________________ (326) शुल फलदायकसंघनेहोज्यो श्रीजिनकृपाचंसूरीजी // 4 // इतिबीजनी शुश् संपूर्णा // // अथ श्रीपजुषणपर्वनी थुइ लिख्यते // // वीरजिनेसरजगअलवेसरराजग्रहीसमोसरियाजी, पर्वपजु. षणणपरिजाखे चनविहसंघपरिवरियाजी, आषाढचोमासाथीपञ्चाशदिननीसंख्याजाणोजी / संबचरीपमिकमणो करिने आतमनिजघराणोजी // 1 // दोयरातादोयधोलाजिनपति / दोयकाला दोयनीलाजी, लांउनवरणप्रमाणसुसोनितसोलेजिनवरपीलाजी / सतरेनेदीपूजाकरिने चैत्यपरवामीकरीजे जी। परवपजुषण पुरवपुन्ये पाम्या लालजाणीजेजी // 2 // कल्पसूत्रनिज घरेपधरावी रात्रिजागोतिहांकीजेजी / वरघोमोसजिसंघमलिने सद्गुरुने आणीदीजेजी / नव ग्यारे तेरे वायण सुणिनेऽरगतिवारोजी / पूजाप्रनावनासद्गुरुत्नक्ति करिने जन्मसुधारोजी // 3 // साहमीवडलकरियेनावे वारंवारजजमंताजी। केशीयलतपसंयमपाले नाव अधिकलसंता जी। आउदिवस पजुषणसेवो जिमसेवे सुरइंदाजी / सुयदेवीसुपसाये लाखे जिनकृपाचंजसूरिंदाजी // 4 // इतिश्रीपजुष. पर्वनीथुश्संपूर्ण // // अथ छींक विचार सज्झाय लिख्यते // ॥ींकशुकननो कहुं विचार / सुगुरुसमीपसुण्यो में सार / आगलमांजो बींकजहोय / अशुजतणीजाणेजो कोय // 1 // पहेलाशुकनहुवा शुनघणा / बींकहुवां निरफलतेतणां / बींकजहुवांपली जोजाण / शुकनहुवांते करो प्रमाण // 2 // मावी