________________ (21) विनयचंजनेजी, सोमांहेमिलै जोया एककैदोयहो॥म्हा॥७॥ इति ज्ञाताधर्मकथांग स० // // अथ 7 // उपासकदशा सूत्रसज्झाय लिख्यते // // ढाल विजियानी // हिवैसातमोअंग ते सांललो, उपासगदशा नामेचंगरे // श्रमणोपासकनीवर्णना, जसुचंदपन्नत्तीनपांग रे // 1 // मनलागो मोरोसूत्रथी, एतो नव वैरागतरंगरे // रसराताझाता गुणलहै, परमारथसुविहित संगरे // म॥२॥णअंगे सुयखंधएक, अध्ययन उद्देस विचाररे॥ दस 2 संख्यायेंदाखव्या, पदपिण संख्यात हजाररे // म // 3 // आनंदादिकश्रावकतणो, सुणतां अधिकाररसालरे // रसलागेजागेमोहनी, श्रोताजनने ततकालरे // म० // 4 // श्रोताआगलतो वांचतां, गीतारश्रपामेरीकरे // जे अर्थदग्धसमजैनही, तेहसंतो करवी धीजरे // म० // 5 // दसश्रावक तो इहांनाषिया, पिण सूत्र जण्योनहीकोयरे // ते माटे शुधश्रावकजणी, एकअरथनीधारणाहोयरे // म० // 6 // साचोहोयतेप्ररूपियै, निस्संकपणे सुजगीसरे // कविविनयचंकहै स्युंथयो, जो कुमतीकरस्यैरीसरे // म // 7 // इति उपाशकदशांगसज्जायः॥ // अथ 8 // अंतगडदशांगसज्झाय लिख्यते // // ढाल // वीरवखाणीराणी चेलणाजी // ए देशी // आठमोअंग अंतगमदशाजी, सुणीकरो कानपवित्र // अंतगमकेवली जे थयाजी, तेहना रे इहां अच्छेचरित्र // आठ // 1 // कर्मकग्निदलचूरतांजी, पूरताजगतनीयास // जिनवरदेव इहां जासताजी, सासताअर्थसुविलास // श्राप // 2 // सकल