________________ (२०ए) अंगकि अन्तरगतिहसी, हो अन्त०, जलवरसंतेजोर कुण न दुवेखुसी, हो कु० // 5 // जाग्योधरमसनेह जिणंदसुमाहरो, हो जि०, तजिया शास्त्रमिथ्यात सुत्रजाण्योखरो हो सू० // जिममालतीलहे लूंग करीर नविरहे, हो कर, ईश्वर शिरसुरगंग तजी परिन विवहे, हो त ॥६॥ए प्रवचन निग्रंथतणो जुगतेवमो, हो० त०, साकरसेलमीत्राखथकीपिणमीठमो, हो थ०॥ स्युं कहियेबहुवातविनयचं इमकहै, हो, वि० एहनासुणने जाव श्रोताअतिगहगहै, श्रो॥७॥इति समवायांग स० सं० // अथ 5 // भगवतीसूत्र सज्झायलिख्यते // // ढाल पंथीमानी // पंचमअंगे लगवतीजाणियेरे जिहां जिनवरनावचनअथाहरे // हिमवंतपरवतसेती नीकट्यारे,मानु परतिखगंगप्रवाहरे // पं० // 1 // सूरपन्नत्तीनामे परगमोरे, जेहनोचै उद्दामनवांग रे॥ सूत्रतणीरचना दरियाजिसीरे, मांहिलाअरथ ते सजलतरंगरे // 50 // 2 // इहांतो सुयखंध एकतिजलोरे, एकसोएकअध्ययन उदाररे // दशहजारउद्देसा जेहनारे, जिहां किण प्रश्न उत्तीसहजार रे // 50 // पदतो दोयलाखअरथे नखारे, ऊपरसहसअठ्यासीजाणरे // लोकालोकस्वरूपनीवर्णनारे, विवाहपन्नत्तीअधिकप्रमाणरे // 50 // 4 // करियेपूजा अने परनावनारे, धरिये सद्गुरुऊपररागरे // सुणिये सूत्रनगवतीरागसूरे, तोहोय नवसागरनोत्याग रे // 50 // 5 // गौतमनामे प्रव्यचढाश्यैरे, सम्यकूझान उदयहोय जेमरे // कीजै साधु तथा साहमीतणीरे, जगति युगतिमनाणीप्रेमरे // पं० // 6 // इण विधसुं एसूत्र आराधतारे, इणनव सीवंचितका बृ० स्त० 19