________________ (267) मायिक लेख्नेहो, प्रतिक्रमण करे तंत // 30 // सं० प्रतिलेखन क्रिया करे हो, सगली पूरवरीत, सहुसफायकिया पके हो, सुगुरु वन्दे धरिप्रीत // 31 // सं पहिली पौषधपारिने हो, सामायिक पणपार, प्रतिलाले अणगारनेहो, अतिथिसंवि. जागविचार // 35 // सं० विधिसेति पौषधकरहो, बहुफलदायकहोय / अविधिसंघाते कीजतांहो, काजसरे नही कोय // 33 // सं० पिणविधिनी खपकीजता हो, अविधि दुवे जे काय, मिचामिछक्कम दीजतांहो, बुटक बारो श्राय // 3 // सं० पौषध औषध कर्मनोहो, टाले जुर्गति दुःख, अशुनकर्म सहु क्यकरेहो, आपे शास्वतासुख // 35 // सं० उत्कृष्ट पौषधतणीहो, यह विहि कही विस्तार, जेशलमेरी संघनेहो, आग्रहकरी सुविचार // 36 // सं० सौलेसेसिमसठ समय हो, नगर मरोट मझार, मृगसिर सुदि एकमदिनेहो, शुभदिन सुरगुरुवार // 37 // सं० श्रीजिनचन्मसूरीश्वरूहो, श्रीजिनसिंहसूरीश, सकचन्दसुपसायलेहो, समयसुन्दरलणे शीस // 30 // सं० // इति स्तवनम्. ॥द्वितीया स्तवनम् // चान्दलियाका // चान्दलिया सन्देसो जिनवरने कहेरे। श्तरो कामकरे श्र विशालरे / बारे पर्खदा जिनवर उलगेरे / पोरे / मोहन मूर्ति महिमावन्तरे / जगमें सुशयघणो सहुकोज पेरे / नेटिस ते दिन धन्य नगवन्तरे // // चां साहिब मुःख अनन्ता म्है सह्यारे / हूं लमियो गमिड बुं नव आलरे / शरणश