________________ (266) एह // 17 // सं० मधुरस्वरे राते करेरे / प्रहरसीमसहाय / गीतगावे वैरागनारे / पातक दूर पलाय // संबे // 15 // ... // ढाल 4 // मारगदेशकमोक्षनोरे-एह // ... बहुपमिपुन्नापोरसीरे / वान्दे देवनवास, संथारागाथा जणेरे / खामे जीवनीरासोरे // 20 // ते नरनारीया / सफल करे अवतारोरे / निशीपौषध करे। नावे नावना बारो रे // 21 // ते पाप अगरे परीहरेरे / चित्तधरे सरणाचार / माल संधारो संथरेरे / ध्यानधरे सुविचारोरे // 22 // ते० धर्मजागरीयाजागतोरे / करे मनोरथएह / संयमले जिनदिनेरे। धन्य दिवसमुज तेहोरे // 23 // ते संखश्रावक पौषधकस्योरे। वीरवखाएयोरे तेह / तिणपरि तुमे पौषधकरोरे / जिमपामोसिवगेहोरे // 24 // ते वीतजयपाटणनो धणीरे, नामे उदायन राय / तिण राते पौषधकीयोरे / वीरबन्दन चितलायोरे // 25 // ते तुंगीयानगरी तणारे, श्रावक शुष अनेक / जिण विधि ते पौषध कियोरे / तिम करजोसुविवेकरे // 26 // ते० बलि श्रावक पौषधकियोरे / आनन्दने काममेव / वलिदृष्टान्त सुवाहुनोरे / मनधरज्योनितमवोरे // 27 // ते // ॥ढाल 5 मी॥महामुनीश्वर नितनमुंजी एराह पाउलिराते ऊपीनेहो,श्रावक होय सावधान,राईप्रायश्चित्त काउसग्गकरेहो, देववन्दे सुविधान // 20 // संवेगी श्रावकहो पौषधनी विधिएह, मिलती सूत्र सिद्धान्तनेहो, मति मनकरज्यो सन्देह // 3 // सं उच्चस्वर बोले नही हो, दोष कह्या जगवन्त / बलि सा.