________________ (234) सार्थ स० // // नंदन जगजन तारसो वारसों कर्मसंतापनें, शिव. रमणीने परणसो हाथो हाथ, नंदन चोवीसमजिनवर शिवसु. खकर जो तुमे, नंदन समवसरणमां बेससोपरषदासाथ स० ॥ए॥ नंदन चोसम इन्ज मलि तुम सेवा सारसे, नंदन प्रातिहारज आठ असे अधिकार, नंदन चनविह संघ थापीने विच रसो जूतले, तुमसेवाथासे नविजनने सुखकार स० // 10 // मातात्रिसला श्म गुण गावै रंगसु, जेनवि वीरप्रनुनो पालो गावे रसाल, श्रीजिनकृपाचंसूरि प्रणमें जिन चोविसमो, गातांसंघने निशदिन वर्ते मंगलमाल सु० // 11 // कलश // त्रण जगत सुखकर महिमसुंदर तीर्थकरचोविसमो, तास गुण वर हर्ष निरजर गावो नवि नव नहि जमो, शुनगनखरतर मुनिपुरंदर कृपाचनप्रसूरीश्वर, रसरिषि अंक चंज (1976) वर्षे नगर सूरत गुणवरु, // 12 // ॥इति चोविसमा जिननो पालणो संपूर्ण // // अथ श्रीपजुसणपर्वनी थुइ लिख्यते // वीरजिनेसर, जगअलवेसर राजग्रही समोसरियाजी। पर्वपजु सण श्ण परिलाखे / चनविह संघ परिवरियाजी, आषाढ चोमा. साथी पच्चासदिननी संख्याजाणोजी। संवरी पमिकमणो करिने आतमनिजघराणोजी॥१॥ दोय राता दोय धोला जिनपति। दोय काला दोय नीलाजी, लांउनवरणप्रमाण सुसोनित / सोले जिनवरपीलाजी। सतरे नेदीपूजाकरीने चैत्यपरवामीकरिजेजी। परव पजुसण पूरवपुन्ये / पाम्या लाल जाणीजेजी // 2 // कटपसूत्र निजघरपधरावी। रात्रि जागो तिहां कीजेजी। वरघोमो