________________ (23) कट्याणक हो षट,अतिहि उदारके, श्रीजिनकृपाचनजसूरिजणे, मुजहोज्यो हो आगमनो आधारके, प्र० // 4 // कलश सुनप्रव्यमुनिनिधिचन्यवरसे नाव शुदि एकमसमे, श्रीवी. रजिनवरत्नविकसुखकर, कट्याणक शुलसंगमे, शीतलजिनेसर चन्जानुवर सुरतबन्दरसुखवरु, जिनकृपाचन्नसुरीन्जसेवो धर्ममंगल हितकरु // 45 // इति उक० सं०॥ ॥श्रीमहावीरस्वामीना सत्तावीसभवनुं स्तवन // स्वस्तिश्री संपदकरण, हरणताप पुःखदंद, प्रणमिपास जिणंदने, जिनगुण गाउं अमंद, // 1 // वीरजिणंद दिणंदसम, शासनके सिरदार, अलियविघन दूरेहरे, नमिये वारंवार // 2 // गौतमस्वामीआदिने, त्रिकरण करुं प्रणाम, लब्धिसिद्धिदायक सदा, सारेवांचित काम // 3 // सुयदेवीसुपसायले, वर[वि. विध प्रकार; वर्धमान जिनचंदना, नव सत्तावीस सार // 4 // ढाल पहेली-जगजीवनजगवालहो ए देशी / वीरजिनेश्वर वंदिये, शासनपति सुखकार, लालरे, माहणकुंम नाम नयरमां, शषनदत्त गुणसार, लालरे, वीर० // 5 // माहणकोमालगोत्रनो, देवानंदा सुजाण, लालरे, पत्नी शीलगुणेकरी, शोजितगुणमहिराण, लालरे, वीर // 6 // आषाढसुदि बनी दिने, चविया स्वर्गथी ईश, ला० उत्तराफाल्गुनी तिणसमे, ऊपनाकूखे जगीश, ला० वी० // 7 // चवदेस्वप्ना देखीया, देवानंदासुप्रधान, ला जाग्रतथईपतिने कयां, अर्थग्रहेसुजान, ला० वी० // // पत्नदत्त ब्राह्मणलणे, सुतहोस्ये गुणखाण, ला सर्वकला ग्रहशे मुदा, सूरवीरमनप्राण ला