________________ / / अहम् // (ग्रन्थाङ्कः 11) पूर्वाचार्यविरचिता बृहत् स्तवनावली। अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः॥ आचार्या जिनशासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः श्रीसिद्धान्तसुपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् // 1 // ॥समवसरन विचार गर्षित स्तवनं लिख्यते // ( उहा) श्रीजिनसासनसेहरो / जगगुरु पासजिणंद / प्रणमी जेहना पायकमल / श्रावी. चौसञ्छ // 1 // तीर्थकर श्रावे तिहां / त्रिगमो करे तयार / समकितकरणीसाचवे / एह कहुँ अधिकार // // करे प्रसंसा समकिती। मिथ्यात्वी होवे मुंक / सूर्य देखे हरखे सहु, घणे अंधारे घूक // 3 // ॥ढाल वीर वखाणी रांणी चेलना एचाल // // श्राप अरिहंत नले श्रावियाजी / गावे अपरह गंधर्व समवसरण रचे सुरवरा जी / संखेपे ते कडं सर्व // 4 // आ नुवनपतिवीसनेमिट्याजी सोलहव्यंतरसार / जोश्समुदश वेमाणिय जुड्याजी / चौसठ इंच सुविचार // 5 // आ // पवनसुर पुंज परमारजैजी। नूमि योजन सम नाउ / मेघiमर रचे मेघने जी / करीय सुगंध निमकाउ // 6 //