________________ (170) बन मनाण ला आलंबन बहु जातिना / नवपदमनमााण साखरे दर्शन ज्ञान चारित्रवलि / तप ए नवपदजाण ला श्री ॥॥ढाल दूसरी ॥जरतरीनी॥देशी॥नवपदध्यावोजविजना। सारजी॥नाए। अगरदोष दूरेटट्या। केवल ज्ञानप्रकाशजी॥ देवदानवपति प्रणमता / प्रगटकरे तत्वखासजी न० // 10 // एवा श्रीअरिहंतने।ध्यावोचतुरसुजाणजी॥नावसहित आराधतां / सिवसुखलहोमहिराण जी न० // 11 // पनरोदप्रसिद्ध / कर्मरहितसुखदायजी // सिघअनंतचतुष्कता। ध्यावोसिघलयसायजी नः // 12 // पंचाचारने पालता, परउपगारप्रधानजी // शुचसिद्धांतवखाणता, आचारजश्रुतखानजी न०॥१३॥ गणतृप्तिकरता जसा / सूत्रअर्थनो दानजी / शिष्यादिकनेश्रापता, नमोनवशायसुजानजी // 15 // कर्मचूमिमांविचरता। सुविचारजी न० // 15 // जिनप्रणीतजे सास्त्रमा / तत्वसद्दहपास्वरूपजी // दरशनरयणप्रदीपने। धारोचितमांअनूपजीन० // 16 // जीवादिक पदार्थनो, बोधस्वरूपविचारजी // विनय. करिसीखोसदा / नाणने सर्वाधारजी न०॥ 17 // श्रशुलक्रियानोत्याग / सुजकिरिया अप्रमादजी // उत्तरगुणनिरुकथी। सहोचरणनो स्वादजी न // 17 // सघनकरमतमहरणकुं / नानुसमोतप जाणजी // कषायरहितबारनेद / तपपदमनमांआणजी न० // 15 // (ढाल)३ जी कपूरहुवे