________________ (१६ए) दिपूजा विविधिप्रकार // सु० // 15 // ज० // देवपूजा तिमगुरुपूजा विधिश्रादरो, करियै साहमीवरल धरियैनाव विसाल, रात्रिजागोकरिजिनगुणगावैप्रीतसुं, अधिकोंधनखरचीने लहिये रंगरसाल // सु०॥२०॥ // ग्यारसनो तपसेवो. विनावसुं, सुव्रतसेवै पौषधश्रीचितलाय, चौरअग्नीना उपवथी ते ऊगर्यो, एतिश्री सेव्यांशिवमारगमांसुखेजवाय // सु०॥२१॥ कलश // श्म नेमिजिनवर स्यामसुखकर सिवादेवीनंदनो। एकादशीतप फलप्रकास्यो नविकजन आनंदनो, सर, नय निधि, नूविक्रमवरसैपोषवदिएकादशी, जिनकृपाचंजसूरिपनणे सुगुरुसेवोजकसी // सु० // 22 // इति ग्यारसवृष स्तवनम् // ॥अथ नवपदवृद्धस्तवनं // (उहा) अरिहंतादिकपदतणो / ध्यानधरि मनमांहि, सिखचक्रगुणवरणवु, त्रिकरणधरिउगहि // 1 // राजग्रही नयरीनली। समवसर्यागणधार // सिखचक्रगुणवरणव्या ते सुणजोअधिकार // 2 // ( ढाल पहली) जगजीवन जगबाखहो // एदेशी श्रीगौतमगणेसरु / पत्नणेजवि सुखकारलालरे / श्रेणकपमुहासांनले / उत्तमधर्मविचार ला० श्री० // 3 // पुर्खनमानुष्यनवलही / सेवोश्रीजिनधर्म ला दानादिकचउन्नेदथी। श्राराधिलहोशर्म ला श्री० // 4 // नाव विना जे दान / सिवसुखतेहथी न थाय ला सील ते निष्फललो.. कमां, नाव विनाकहिवाय ला० श्री० // 5 // लाववीहूणोतपसही। नववित्थारणहेतु ला० दानादिक लावेमिट्या / नवसायरनासेतु ला श्री० // 6 // जावमनो विषयिकह्यो, सावं