________________ (156) श्रदीपलब्ध्या परमान्नदाता / स गौतमो यन्तु वांछितं मे // 6 // सदक्षणं जोजनमेव देयं / साधर्मिकं संघसपर्ययेव // केवट्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनां / सगौतमो यन्तु वांवितं मे // 7 // शिवंगते जतरिवीरनाथे / युगप्रधानत्वमिहैव मत्वा // पट्टाभिषेको. विदधे सुरः / स गौतमो यन्तु वांछितं मे // // श्रीगौतमस्याष्टकमादरेण प्रबोधकाले मुनिपुंगवाये // पति ते सूरिपदं सदैवानंदं बनते नितरां क्रमेण // ए॥ इतिश्रीगौतमस्याष्टकम् // ॥ॐ नमः पार्श्वनाथाय विश्वचिंतामणीयते , झी धर ऐवैरोट्या पद्मादेवीयुतायते // 1 // शांतितुष्टि महापुष्टि, घृतिकीर्तिविधायिने, झी दृष्टव्यालवेत्तालसर्वाधिव्याधिनाशने ॥॥जयाजिताख्या विजयाख्या पराजितयान्विते, दिकूपालैःग्रहैर्यदै, विद्यादेवी निरन्विते ॥३॥ॐ असि आउसाय, नमः त्रैलोक्यनाथतां, चतुषष्टि सुरेंप्रास्ते, जासंते त्रचामरैः // 4 // श्रीसंखेश्वरमंमन पार्श्वजिनप्रणत कल्पतरु कटपः, चूरयविघ्नवातं, पूरय मे वांबितं नाथ // 5 // इति त्रयोविंशतिजिनस्तोत्रम् // ॥अथ पंचषष्टियंत्रगर्भित श्रीचतुर्विशति जिनस्तोत्रं लिख्यते // // श्रादौ नेमिजिनं स्तौमि / संनवं सुविधिस्तथा ॥धर्मनाथं महादेवं / शांति शांतिकरं सदा // 1 // अनंतं सुव्रतं नक्त्या ने. मिनाथं जिनोत्तमं // अजितं जितकंदर्प / चं चंसमप्रनं // // आदिनाथ महादेवं / सुपार्श्व विमलं जिनं // महिनाणं गुणोपेतं धनुषां पंचविंशति // 3 // अरनाथं महावीरं / सुमतिं